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Tuesday, April 12, 2011

मेरा नेता चोर है? ये कटुसत्य कहने की आपने कभी हिम्मत की?



 खून से लिखी जाती है क्रांति, इंटरनेट से नहीं  नवभारत टाइम्स
प्रसून जोशी जी इतने दिन की पेपर मिडिया  की मक्तेदारी एक पल में ख़तम हो जाने से तमाम हिंदी से लेकर मराठी के लोकसत्ता म टा जैसे अखबार  बखौला गए है. और हम ही जनमत की आंधी  निर्माण करते है , उसे उलटा पुलटा कर सकते ये गुर्मी भ्रम  भी ख़त्म हुवा , और जमिन से चार उंगल उपरसे चलने वाला इनका दिमाग जमिनपर आया , चकरा  गया . और अब इंटरनेट को कोस रहे है भलाबुरा कह रहे है.  खूसट बूढ़े लोग जिस तरह जवान नयी पिढी को कोसते है वैसी ये बात हुवी.  आन्ना हजारे को अपने बगैर सफलता मिली इसी लिये ये  बिकावु, पैड न्यूज वाले अखबार शोर मचा रहे हे. इसे कहते है खिसियानी बिल्ली खभा नौंचे....

 आदम और हुवा के ज़माने से से लेकर १८५७ तक हजारो बार क्रांति हुवी. तब तो आपका अखबार नही था. फिर ये महासंग्राम कैसे हुवे. जरा हमें भी समझाना . अखबार वालो अभी जागो नए तंत्र का स्वीकार नही तो डायनोसर की तरह दुनियासे  ख़तम हो जावोगे .
प्रसन जी कुछ हद तक आपका कहना ठीक है,लेकिन ये भी सत्य है की इसी इंटरनेट की वजह से यह क्रांति सफल हुई है,सो ने पढ़ा एक तो ज़रूर आया,वैसे लगता है आप के मन मे मलाल है की आपने सिस्टिम बदलने को कुछ नही किया इसलिए आप  घटना जे बाद मे विचार रखखार जो आग है उसे सिर्फ धुवाँ बताना चाहते ..आप १८५७ की क्रांति को ही ले लें उसमे भी रोटियों में सन्देश छिपा कर एक दुसरे तक पहुँचाया जाता था,

आज किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं है की वो इस तरह की गतिविधियों(सन्देश प्रसारण की) में शामिल हो सके वो भी तब जब हमारे पास मोबाइल और इन्टरनेट जैसे सशक्त चीजे मौज़ूद हैं अगर इंटर नेट के ज़रिये कुछ नहीं होता तो चीन जैसा देश "मिश्र" के आन्दोलन (अभी हुस्नी मुबारक के खिलाफ जो बगावत हुई) के समय अपने देश में "मिश्र(ईजिप्ट )" शब्द को ही क्यों ब्लॉक करता. आज जब हमारे पास संचार के इतने अच्छे अच्छे साधन हैं तो फिर अगर हम अभी भी पुराने तरीकों को अपनाते रहेंगे तो लीबिया जैसा हस्र होगा जहाँ एक तानाशाह (गद्दाफी ) ने न जाने कितने मासूमों को मरवा दिया. आज किसी भी देश में अगर कोई भी असामाजिक गतिविधि होती है तो सबसे पहले वहाँ इन्टरनेट और मोबाइल को बंद कर दिया जाता है.

और आज अगर अन्ना हजारे जी के आन्दोलन को इतना ज्यादा समर्थन मिला है तो कहीं न कहीं इसमें मोबाइल और इन्टरनेट का अभूतपूर्व योगदान है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है | तीन दिन में 642,921 have signed the petition! लोग सही करते. अखबार वाले इतना सपोर्ट कभी ले सकते क्या ? कश्मीर से कन्याकुमारी गुजरात से दूर तक आसाम और परदेश में भी लोग धरने पर बैठे थे क्या उन्हें खाब्ब गिरा था आन्ना अनशन करने बैठे है उन्हें सपोर्ट करो. अखबार की पुरे इतिहास में कभी इतनी आंधी चली क्या?इतना ही  काफी है.
आन्ना ने . अनशन खत्म करते हुए कहा कि जैसे भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु ने अंग्रेजों की नींद उड़ाई थी वैसे ही हमने काले अंग्रेजों की नींद उड़ा दी है। मेरा नेता चोर है इस तरह हाथ पर टटू निकाल कर हजारो लोग रस्ते पर उतरे. स्वातंत्र्य के लिये शहीद हुवे  भगतसिंह सुखदेव राजगुरु इनका नारा देश में पहेली बार गूंजा अखबार वालोने गये ६० साल में   इनके  बलिदान की कभी बात की? मेरा नेता चोर है? ये कटुसत्य कहने की आपने कभी हिम्मत की?   45 साल से सरकार जिस लोकपाल कानून को टाल रही थी उसके लिये अखबार वालोने कभी आवाज निकाला?

अखबार को लोकशाही का चौथा स्तम्भ कहा जाता था......उस अखबार को...  आपने  अखबार वालोने खुद के भ्रष्ट्राचार छुपाने; के लिये; राजकारनी &; नेता की बाटिक दासी बना दीया है . क्या ये सच नही? यार हमारी बात सुनो ऐसा एक अखबार चुनो जिसने भ्रष्ट्राचार ना कीया हो जो भ्रष्ट्र ना हो. इतना ही नही इस अखबार का इस्तमाल कर के खुद्द राजकारानी नेता बन गये है, और जब आप ही भ्रष्ट्र सिस्टिम का हिस्सा बन गये तो भ्रष्ट्राचार को विरोध करने का नैत्तिक अधिकार आप खुद खो  चुके है. और इसी  अपराधी भावना से; आज आप लोग इंटरनेट को सहन नही कर सकते. आज आप के अखबार के पन्ने जरा देखो जिसमे आधे से ज्यादा पन्ने पर व्यवसायिक जाहिरात होती है,और बाकी बची न्यूज तो वो भी नेता , गुंडा गर्दी, महिला अत्याचार वो भी जात धर्म का सहारा लेके.और पैसे लेकर छपती है. रस्ते उखड़े, पानी नही, बिजली नही इसी घटना के पीछे आप के वार्ताहर घुमा फिरा के लिखते है. तोडपानी करते है .   इन समस्या के जड़ तक जाने की कभी अखबार वाले ने कौशिश की है? सामाजिक गतिविधिया कभी कभी आप लोग आचार चटनी की तरह इस्तमाल करते है बस हो गया आपका सामाजिक दायित्व पूरा. 

अन्ना ने कहा कि असली लड़ाई अब शुरू हुई है। . इसे भ्रष्टाचार के मसले पर घिरी सरकार पर अन्ना हजारे के आंदोलन और उससे उपजे जनाक्रोश के डर का ही असर कहा जा सकता है कि सरकार ने लोकपाल विधेयक प्रारूप की अधिसूचना भी एक दिन के अंदर ही जारी कर दी।  जबकि अन्य मामलों में इस प्रक्रिया को पूरा करने में एक सप्ताह तक का समय लगता है। आप के काल में कभी आपने  सरकार को इस तरह की टक्कर दी है? चुनाव  पैसा शराब जाट धर्म गुंडागर्दी,महाबली के सहारे ही जीते जा रहे है, कभी आपके अखबार ने खुल कर आवाज निकाली?   

अन्ना ने सिर्फ भ्रष्टाचारियों के विरोध मे आंदोलन चलाया था, मगर सभी राजकीय  नेता को ऐसा ही लग रहा  है की जैसे कि आंदोलन उनके  ही विरोध मे ही है.... और यही इस आन्दोलन का यश है. आप कितना भी कोसे वक्त आपके हाथ से निकल चूका है.







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