अजीबोगरीब है हमारे पंतप्रधान कभी उनके हाथ बंधे होते है तो कभी गठबंधन का बोझ से दबे होते है अब आण्णा हजारे के अनशन से निराश है. अगर वो खुद स्वच्छ है ईमानदार प्रामाणिक है तो जिस तरह अमेरिकी दबाब में भारत के विरोध के बावजूद अणु कानून पास कीया वैसा ये लोकपाल कानून तो देश की मांग है किसीका विरोध नही फिर बिल पास क्यों नही करवाते . बस निराश हुवे . देश के पुरे सन्माननीय पद मिलाने के बाद भी वो निराश है इसका मतलब क्या? और क्या लालच बाकी है क्या?
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