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Friday, August 30, 2013

फटकळ हा सर्व तमाशा पहात गातल्या गालात हसत.........

........नमस्कार गृहमंत्री साहेब … मी फटकळ बोलतो …. अरे या नंबरवर कश्याला फोन केला । माझी कांही इज्जत आहे कि नाही .… माफ करा साहेब पण माझे कामच खूप अर्जंट आहे …। मला हार्ट ची सर्जरी करायचा  डॉक ने सल्ला दिला . आजकाल कडकी चालू आहे …। इतकी वर्षे आपल्या म्हणण्या प्रमाणे अनेक बॉम्ब हल्ले दहशदवादी हामले केले . तुम्ही निवडून याव म्हणून जीव धोक्यात घालून अंतकवाद करून समाजात दहशद बसविली , भांडणे लावली ….

हां गप बस जास्त बडबड करू नकोस … त्या बदल्यात करोडो रुपये मी तुला मोजले …तसेच पोलिसां पासून तुझे संरक्षण केले हे विसरला का गद्दारा …. मायबाप माफी असावी . सर्जरीचा खर्च मला झेपणारा नाही …कृपा करून कांही व्यवस्था करा …… हां एक काम कर पोलिस तुला अटक करण्यास येतील तेंव्हा थोडाफार धिंगाणा करून अटक करून घे …. लवकरच सरकारी खर्चाने तुझ्या वर सर्जरी केली जाईल . तुरुंगातील तुझ्या सारख्या आरोपीला खास खाना दिला जातो तो खाल्ला कि तुझी तब्बेत हि चांगली सुधारेल …। लवकरच निवडणुका आहेत तुला फार काम करायचे आहे …। बर ठेव आता …. पोलिस २ ४ घंट्या च्या आत तुला अटक करतील ……।

दुसऱ्याच दिवशी TV चेनल वर ब्रेकिंग न्यूज झळकू लागल्या …. कुप्रसिद्ध अंतक वादी २५ बोंब स्फोट घडवून आणणारा क्रूरकर्मा गेल्या १० वर्षा वर्ष पासून पोलिसाना हुलकावणी देणारया फटकळ यास पोलिसांनी देशाच्या सीमेवर शिताफीने अटक केली ……. तेंव्हा तो देश सोडून जाण्याच्या तयारीत होता . पोलिसांनी अत्यंत चातुर्याने धाडसीपणे त्यास कशी अटक केली याची रसभरीत वर्णन पोलिस प्रमुख करत होते …. TV प्रेक्षकाना मात्र फटकळ हा सर्व तमाशा पहात गातल्या गालात हसत असल्याचा भास होत होता. तर गृहमंत्री  AIIMS फोन लावून VVIP च्या हार्ट सर्जरी करण्याची तयारी करण्याची व्यवस्था करण्यास तयारी करण्यास सांगत होते .

Sunday, August 25, 2013

Dhyan se padhe . aur soche . Himmat kya chij hai

Dhyan se padhe . aur soche . Himmat kya chij hai

माणूस हाच एक मोठा चमत्कार आहे . संत गाडगे बाबा

माणूस हाच एक मोठा चमत्कार आहे . संत गाडगे बाबा

Thursday, August 22, 2013

मौत का दुःख

वक्त बड़ा आजीब होता है इसके साथ चलो तो तो किस्मत बदल देता है न चलो तो किस्मत को ही बदल देता है|





मौत  का दुःख
अकसर एक सा नहीं होता...
कौन मरा ?
कैसे मरा?
कब मरा?
पहले सब हिसाब किया जाता है....

शिस्तीने राष्ट्र मोठे होते …

सरळ मार्गाने व्यवहार करणे अवघड कठीण नाही मात्र आपले स्वतःह चे व्यवहार स्वच्छ असले पाहिजे …. असे असेल तरच तुम्ही अश्या नियामांने व्यापार करू शकता . सुरवातीला नागरिकांना तुमचा राग येतो . पण एकदा सवय झाली की नागरीक स्वतःह च तुमचे नियम आनंदाने पाळतात आणि ईतर ग्राहकांना ही हे नियम आपल्याच हिताचे आहेत आपण ही ते पाळा असे समजावून सांगतात . शिस्तीने राष्ट्र मोठे होते … पण शिस्त लावणारा पाहीजे …

Thursday, August 15, 2013

पाप का गुरु कौन है?

एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में
शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने
गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे
पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए
कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित
जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप
का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और
अध्ययन के बाहर था। पंडित
जी को लगा कि उनका अध्ययन
अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर
काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब
नहीं मिला। अचानक एक दिन
उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने
पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण
पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी।
वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ
दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा।
पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास
ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी।
पंडित जी किसी के हाथ
का बना खाना नहीं खाते थे, नियम- आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे।
इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और
खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से
बीते, लेकिन सवाल का जवाब
अभी नहीं मिला।
एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी...! आपको बहुत तकलीफ होती है
खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और
कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर
आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं।
आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं
दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी।
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित
जी को लोभ आ गया। साथ में पका-
पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में
लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-
व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से
बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा।
लेकिन इस बात का विशेष ध्यान
रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें
मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले
ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर
ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए,
त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई

थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध
हो गए और बोले, यह क्या मजाक है?
वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है।
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, 

किसी के हाथ का भी नहीं पीते थे,मगर
स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ
का बना खाना भी स्वीकार कर लिया।
यह लोभ ही पाप का गुरु है।

डॉलर ची कींमत साठ च्या वर गेली म्हणून बोंबलणार !!