महात्मा गाँधी की माला जपने वाले INDIA में झूठ बात करना झूठे बयान देना इस देश में कानूनन गुन्हा नही .मगर सच कहा तो ? सजा ये मौत भी कम है.वैसा गिरी ,जैलसिंग,अहमद रेड्डी इन लोगों को किस लिये राष्ट्रपति बनाया ये तो अभी भी जनता के मन में संभ्रम है. झेलसिंग को रबर स्टंप तक कहा जाता था. इन लोगोको सिर्फ रुलिग़ पार्टी को फायदा होना इसीलिए राष्ट्रपति बनाया गया ये बात जग जाहीर है. शासन गलत निर्णय ले और जनता ने उस का सच उगला तो सजा ये कैसी लोकशाही. भ्रष्ट्र नेता की भ्रष्ट्राचार के लिये ऐसा INDIA की लोकशाही का मतलब रह गया है.
माना कि रामचंद्र ने सिया से कहा था; "ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुंगेगा दाना ...कौवा मोती खायेगा....लेकिन उनकी बात कौवा और हंस तक ही जाकर रुक गई थी. शायद इतनी भयावह स्थिति के बारे में स्वयं उन्होंने ने भी नहीं सोचा होगा. अगर सोचते तो कौवा और हंस से आगे की भी बात जरूर करते. आख़िर भगवान थे.
भू दान से हमारा सफ़र सेज विकास के नाम खेती हड्ड़प करो यहाँ तक आके पहुंचा है. ओरीसा में यूनिवर्सिटी निर्माण के नाम पर ६००० एकर से ७००० एकर मोके की जमिन हड़पने डाव में अखेर सुप्रीम कोर्ट के दखल देना पड़ा . आज काला धन स्विस बैंक में जमा नही होता वो काला धन किसान की भूमि पर कबज्जा कराने के लिये काम आ रहा है. किसी भी कस्बे में जावो वंहा ७० लाख से १ करोड़ रुपये एकड़ जमिन के भाव हो गये है . उद्योगपति की लाइन लग्गी है. इस भाव में जमिन खरेदी करके साक्षात् कुबेर को भी खेती में घाटा होगा और वो आत्महत्या कर देगा . मगर शतुरमुर्ग जैसा अपना सर मिटटी में घुसाकर अमेरिकी की ढोल पर नाचने वाले हमारे मन मोहन और उनके अर्थशास्त्री के ध्यान में नही आता होगा क्या यह इक सवाल है.
प्याज के बढे तो जोरशोर से महंगाई के खिलाफ २४ सौ घंटे चिल्लाने वाला मध्यमवर्ग और मिडिया आज मुह बंद करके बैठ गया है.किसान का पक्ष लेने वाला इस देश में कोई नही. सट्टा रूपी शेअर बाजार जरासा लुढ़क गया तो मनमोहन का पूरा मंत्री मंडल बीमार गिर जाता है. और उपचार शुरू होते है. मगर किसान मारा भी तो किसी के सर पर जू तक नही रेंगती है अगर आप ध्यान दे तो २००९ में १७९६३ किसानो ने देशभर में अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया .अगर इसके लिये कोई जिम्मेदार है तो देश की जनता क्योकि जो कोई भी मंत्री है वो हमारे बीच का ही है और हमने ही उसे वहां पर बिठाया है विकास मिश्रा
माना कि रामचंद्र ने सिया से कहा था; "ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुंगेगा दाना ...कौवा मोती खायेगा....लेकिन उनकी बात कौवा और हंस तक ही जाकर रुक गई थी. शायद इतनी भयावह स्थिति के बारे में स्वयं उन्होंने ने भी नहीं सोचा होगा. अगर सोचते तो कौवा और हंस से आगे की भी बात जरूर करते. आख़िर भगवान थे.
भू दान से हमारा सफ़र सेज विकास के नाम खेती हड्ड़प करो यहाँ तक आके पहुंचा है. ओरीसा में यूनिवर्सिटी निर्माण के नाम पर ६००० एकर से ७००० एकर मोके की जमिन हड़पने डाव में अखेर सुप्रीम कोर्ट के दखल देना पड़ा . आज काला धन स्विस बैंक में जमा नही होता वो काला धन किसान की भूमि पर कबज्जा कराने के लिये काम आ रहा है. किसी भी कस्बे में जावो वंहा ७० लाख से १ करोड़ रुपये एकड़ जमिन के भाव हो गये है . उद्योगपति की लाइन लग्गी है. इस भाव में जमिन खरेदी करके साक्षात् कुबेर को भी खेती में घाटा होगा और वो आत्महत्या कर देगा . मगर शतुरमुर्ग जैसा अपना सर मिटटी में घुसाकर अमेरिकी की ढोल पर नाचने वाले हमारे मन मोहन और उनके अर्थशास्त्री के ध्यान में नही आता होगा क्या यह इक सवाल है.
प्याज के बढे तो जोरशोर से महंगाई के खिलाफ २४ सौ घंटे चिल्लाने वाला मध्यमवर्ग और मिडिया आज मुह बंद करके बैठ गया है.किसान का पक्ष लेने वाला इस देश में कोई नही. सट्टा रूपी शेअर बाजार जरासा लुढ़क गया तो मनमोहन का पूरा मंत्री मंडल बीमार गिर जाता है. और उपचार शुरू होते है. मगर किसान मारा भी तो किसी के सर पर जू तक नही रेंगती है अगर आप ध्यान दे तो २००९ में १७९६३ किसानो ने देशभर में अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया .अगर इसके लिये कोई जिम्मेदार है तो देश की जनता क्योकि जो कोई भी मंत्री है वो हमारे बीच का ही है और हमने ही उसे वहां पर बिठाया है विकास मिश्रा
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