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Tuesday, August 30, 2011

क्या करेंगे आन्ना....... कंहा कंहा देखेंगे आन्ना.....

क्या करेंगे आन्ना....... कंहा कंहा देखेंगे आन्ना.....
आन्ना का अनशन अखेर ख़त हुवा. जल्लोष का माहोल भी धीरे धीरे कम होने लगा. सब लोकपाल आया तो भ्रष्ट्राचार कम होगा कहते कहते नहीं थकते. हो रहा भारत निर्माण आन्ना के साथ युवां का हाथ . आन्ना तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ है के नारों से पूरा भारत गूंज उठ रहा था. कांग्रेस पीछे गिर गयी. उनकी गोंडमदर सोनिया गाँधी परदेश मे बीमारी का इलाज करवा रही  थी. मगर इधर पूरी कांग्रेस बीमार गिर गयी थी. मानो पूरा पक्ष कोमा मे गया. सिब्बल चिदंबरम एंड कंपनी ने समस्या सुलझाने क़ी बजाय और बढ़ा दी. पंतप्रधान भी मैडम न होने से कुछ निर्णय नहीं ले पा रहै थे. 

एक महाराष्ट्रियन ने केंद्र के नाक मे दम निकाल दीया था. मुग़ल सलतनत के काल से दिल्ही  को इन मरहठे ने सुकून से जीने नहीं दीया . पहले शिवा शिवा करते करते औरंगजेब ने महाराष्ट्र मे ही प्राण त्यागे. बाद मे संताजी धनजी ने मुग़ल सैन्य का ये हाल कीया क़ी,......  दिल्ही के मुग़ल  सैनिक और घोड़ों को पानी में भी संताजी धनजी ये मराठाह दिखाते थे और घोड़े पानी पिने से डरते थे. आज भी वो ही परंपरा चालू है. ....... फरक आज सिर्फ एक ही मरहठा निशस्त्र ७५ साल का बुढा सब को भारी पड़ा था. सिब्बल, दिग्गी, चिदंबरम ,  खुर्शीद ये सारे कांग्रेस आला हाय कमान को तो नीद मे भी आन्ना ही आन्ना नजर आ रहै थे. शरद पवार और महाराष्ट्र के कांग्रेसी मंत्री खासदार दूर से ख़ुशी से ये तमाशा देख रहै थे. भाजपा के अडवाणी को  फीर से पंतप्रधान के खाब्ब दिन मे दिखने लगे थे.
.............. दस दिन का तमाशा मिटने का नाम नहीं ले रहा था.... आखिर मनमोहन सिंह  महाराष्ट्र के नेता को शरण गए और ये सब ख़तम करने का जुगाड़ ज़माने का जिम्मा किसी कोने मे खड़े हुवे विलासराव देशमुख को सोंपा,और  जान छुड़ाने क़ी विनंती क़ी. .........
अपनी जुल्फे सवारतें हुवे देशमुख जी ने क्या जुगाड़ लगाया और अनशन कैसे ख़तम हुवा ये मनमोहन आज भी सोचते रहै है. और इसे मे मुझे एक दोस्त के साथ सरकारी दफ्तर जाने का मौका मिला.
........ सरकारी दफ्तर का सुबह रहता वैसा ही माहौल आज भी था. आन्ना क़ी आंधी का कोई आसार नहीं दिख रहा था. आधे टेबल खाली ही थे. कोई चाय पी रहा था. एक सरकारी टेबल पर लेडिज स्टाफ का  जमावड़ा लगा था. मन मे आया चलो लेडिज तो काम कर रही ........
 हम उनके टेबल तरफ जाके देखने लगे. और हमारा भरम टूट गया. उस टेबल पर तो साड़ी का सेल लगा हुवा था. त्यौहार नजदीक आने से सेल्समन ने साड़ी और बाकी मेचिग सामान सरकारी कार्यालय मे ही आके बेचना चालू कीया था. हर सरकारी दफ्तर मे इसवक्त ऐसा ही होता है............ ये मालूम हुवा. ऑफिस   ड़ीलेव्हरी और वो भी आसान किश्तों मे ये सुनहरा मौका कोनसी औरत छोड़ेगी.................
जिस साहब से हमारा काम था, वो बारा बजे पधारे. इधर उधर क़ी बाते करते करते दोस्त ने काम का जिक्र कीया और लिफाफा सरकाया. साहब ने लिफाफा चेक कीया और बेरंग वापस कीया. और साहब दुसरे काम मे लग गए.
लिफाफा वापस आने से हमें लगा आन्ना का आसार हो गया और साहब ने रिश्वत लेना छोड़ दी. बगैर रिश्वत का काम होंगा ये सोचकर हम खुश हुवे.  आधा घंटा बिता घंटा बिता दुपहर खाने का वक्त हुवा. मगर साहबजी ने फाइल से मुंह उप्पर नहीं कीया. आखिरकार दोस्त ने ही साहब को कैंटीन मे नास्ते च्याय पिने का आमंत्रण दीया. और हम सब कैंटीन मे गए.  भरपेट नास्ते के बाद दोस्त ने काम का जिकर कीया तो साहब ने काम होगा नहीं ये नीरसता कहा. मित्र परेशां हुवा. साहब से मिन्नतें करने लगा. मगर साहब पर कोई आसर दिखाई नहीं दीया.
मित्र ने लिफाफा चेक करके साहब के हाथ मे देने क़ी कौशिश क़ी मगर साहब ने हाथ पीछे किये. थोड़ी देर बाद हमें मायूस देखकर साहब को ही हमारी दया आयी काम होगा ये आश्वासन दीया. मगर...... कहते कहते साहब ने कंहा..... अब आपको ज्यादा रक्कम देनी पड़ेगी...... अब इतने कम रक्कम मे काम करना मुश्किल है , कहने लगे. हमें कुछ समज मे नहीं आरहा था, क्या करे...... साहब ने ही मौन तोड़ते हुवे कहा अब ओफ़ीस  मे एक टेबल बढ़ गया इस लिए खर्चा ज्यादा लगेगा. दोस्त ने कहा मुझे तो कुछ दिखाई नही दीया. साहब मुस्कराते  करते हुवे बोले लोकपाल का हिस्सा बढ़ गया है....... हमने कंहा अभी तो लोकपाल बिल भी नही आया तो आपने हिस्सा जुड़ा दीया....... अजीब बात है...... कहते लिफाफे में ज्यादा नोट डाले. ताकी भविष्य में साहब पकडे गये तो केस रफादफा करने के हमारे पैसे काम आयेंगे.................. बोले  तो लोकपाल एक और टेबल. जय हो आन्ना जय हो लोकपाल.......

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