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Tuesday, August 16, 2011

हमने विष बोया उसे अमृत लगे ये अपेक्षा करना ही गलत है.

आज रोने से चील्लाने रास्ते पर धरना धरने से कुछ नही  होगा. हमने गये ६५ साल में  मतदान करते वक्त जो पाप कीया उसका ही यह फल है. आपने-हमने  भ्रष्ट्र तरीका अपनाते हुवे मतदान कीया, फिर किस मुह से हम भ्रष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठायेगे. कभी धर्म मजहब के नाम कभी जात-पात देखकर  कभी पैसा लेकर, कभी नेता पर अंध विश्वास रखकर, कभी एक शराब की बाटल तो कभी शबाब बदले में तो कभी भाषावाद के आड़ में , कभी तो कीसी गल्ली में  मंदिर बनवाने के बदले  तो कभी कंही मस्जिद बनवाने के बदले तो कभी यात्रा के बदले सौदा करते हुवे  गलत आदमी को चुन के देते है. . हमने  विष बोया उसे अमृत लगे ये अपेक्षा करना ही गलत है. हम गुलाम थे हम आझादी में रहने के लायक नही और भविष्य में गुलाम ही रहने के लायक है.




आदमी से गलती एक बार हो सकती और उसे प्रथम गलती की वजह माफ़ भी कीया जाता है. हमको हर ५ साल के बाद गलती दुरुस्त  करने के कई मौके मिले फिर भी बेवकूफों जैसी वही गलती हर बार करते रहे . १०० में से ४०-४५ टक्के नागरिक तो मतदान करते ही नही. वो सीधे कंही मंदिर कंही मस्जिद कंही दर्शन करने बाहर निकल जाते है जैसे ये भगवान उनकी सब मुसीबते दूर करेगा. और बाकी जो करते है वो कंहा इमानदारीसे मतदान करते है. जो नेता ५००० का TV देकर आपका हमारा मत खरेदी करता है वो क्या जनसेवा करेगा? ये कभी हमने सोचा है. 

हमारे आपके गाँव के नेता जिन्हें हम बारबार चुनके  देते है, आज करोडो पति अरब पति बन गये. ये कैसे बने इनका व्यवसाय क्या ? ये कितना टैक्स देते ये कभी हमने सोचा ?. जो नेता गुसलखाने में भी चार पहिये की गाड़ी में जाता वो इलेक्शन में शपथ पत्र देता उसके पास गाड़ी नही और हम विश्वास रखते है. ये गाड़ियाँ उसके नाम पर नही मगर उसने बनाये हुवे सामाजिक धार्मिक ट्रस्ट शैक्षणिक संस्था की रहती और उसका खर्चा केन्द्रीय सरकार के योजना में से होता रहता है. जो योजना गरीब जनता के लिये सुविधा के लिये है. उसपर ये नेता राजरोस डाका डालकर बढे हो गये. इन्होने सहकारी व्यवस्था का गैरफायदा लेकर ये सहकर उजाड़ दीया , मगर कानून इनका कुछ बिगाड़ नही सकता, और हम चुप है. आज सहकर उजाड़कर ये लोग वही कारखाने खुद मिट्टी मौल में खरीद रहे है. कारखाना चलाना मुश्किल लगा तो ये नेता शिक्षा संस्थाएं के पीछे पड गये. 

जगह ईमारत सरकारी पैसे की , शिक्षक से लेकर चपरासी तक पूरा नौकरवर्ग शासकीय अनुदान के पैसे से अड़व्हान्स  इस्तीफे के साथ .  कच्चा माल विद्यार्थी तय्यार ही है,  उसे ख़रीदने की जरुरत नही, उल्टा डोनेशनरूपी लाखो रुपये गुरु दक्षना देने के लिये माँ बाप कतार लगा क़र खड़े ही है. और मालक शिक्षा सम्राट नेता. इस देश में नेता , गुत्तेदार और शिक्षा सम्राट होने के लिये कीसी भी लायकी की जरुरत नही होती. बस कागज को कागज लगावो और जो चाहे कुछ भी करो. एक बेईमान नेता , एक वकील  एक अकाउंटन्ट और नौकरशाह मिले तो देश भी बेच डाल सकते है . और कानून उनका कुछ बिगाड़ नही सकता ये कड़वा सच  है.        भाग १ .........

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