28 से 30 अक्टूबर के
बीच ग्रेटर नोएडा (भारत) में पहली बार फॉर्मूला 1 का आयोजन होगा! यह पहला
मौका होगा जब भारत के तेज रफ्तार के दीवानों को अपनी दीवानगी लाइव दिखेगी!
आज भारतीयों को रेसिंग कार शर्यत ट्रेक से ज्यादा रोटी,कपडा मकान के साथ
साथ बिना खड्डे की साफ सडके और २४ घंटे अखंड बिजली, किफायती दाम मे
स्वास्थ सेवायें और बच्चों के लिये शिक्षा इनकी ज्यादा जरुरत है.! मगर
अफसोस की बात है कि ; आज इन समस्या सामना कर के, भारतीयों को अच्छी सुविधायें
प्रदान कराने की क्षमता किसी भी राजनैतिक नेता के पास नहीं!
जिस चीज की जरुरत ९०% भारतीय जनता को नही, उस रेसिंग कार ट्रेक, फौर्मुला १
पर कार रेस पर हजारो करोडो रुपया बरबाद किया जा रहा है! और विकास के ढोल
पिटे जा रहै है! भारतीय सडके जहां ७०-८० किलोमीटर की रफ्तार से भी गाडी
चलाना मुश्कील है; उसी देश मे ३०० किलोमीटर से ज्यादा तेज रफ्तार की कारे
चलाने के शर्यत के लिये ट्रेक बनाना ; ये समझदारी नही बेवकूफी भरी विकास
की योजना है! आज एक दो घंटे के कार रेस के लिये, १०%-२०% उंच्चे वर्ग के
लिये इतना २००० करोड रुपये खर्च करके हम कीस विकास की बाते करते है?
ग्रामीण भारत मे होनेवाली परंपरागत बैल गाडी शर्यत मुक प्राणी पर
होनेवाले अत्याचार के बहाने कोर्ट द्वारा मूक प्राणी भूतदया संघटनो ने बंद
कारवाई ! और ग्रामीण मनोरंजन पर पाबंदी लगायी! जब भी कहीं फॉर्मूला-1 रेस का आयोजन होता है , आपको सबसे पहले हर तरफ
बड़े-बड़े बोर्ड पर ये लिखा नजर आएगा कि इस खेल को देखते वक्त भी जान का
जोखिम है और कोई हादसा हुआ तो इसकी कोई जिम्मेदारी आयोजकों पर नहीं होगी।
जी हां, फॉर्मूला1 बेहद खतरनाक खेल है। न सिर्फ ड्राइवर अपनी जान जोखिम में
डालते हैं बल्कि दर्शकों के साथ भी हादसा हो सकता है। क्या इन संघटनोन को फार्मुला
१ के कार चालक की होने वाली मौते, उनपर होनेवाले अत्याचार दिखते नही! या
काले पैसे की काली पट्टी से न्याय देवता की तऱ्ह इनकी भी आंखे और मुहं बंद
कर दिये गये है !
२५०० एकर्स किसानो की जमीन पर यह बुद्धा इंटर नैशनल
सर्किट बनाया गया है ! अहिंसा परमो धर्मः गौतम बुद्ध का नारा है ; और उनका
कहना है किसी भी प्रकार की हिंसा पाप है , चाहे वह प्रयोजनीय हो या
निष्प्रयोजनीय। फीर भी इस हिंसात्मक खेल जगह को बुद्धा इंटर नैशनल सर्किट
नाम दिया गया है.! मिडिया के दलाल जो २४ घंटे ब्रेकिग न्यूज देते अत्याचार
हिंसा सनसनी खबरे देते, हम ही जनता के हीत रक्षक है ये कहते रहते उन्होने
, ये
फॉर्मूला 1 का तमाशा कीस के लिये हो रहा है? ये सवाल खडे नही किये ! क्या वाकई इस फॉर्मूला
1 की भारत को जरुरी है क्या ? इसपर लोगों की राय लेने की जरुरत भी इनको
महसूस नही हुवी! और सरकार को तो सामान्य जनता के हीत के बजाय घोडे बेच कर
आंख बंद कर के ये जागतिक विकास का तमाशा देख रही है.और विकास के महासत्ता
के ढोल पिट रही है!
किसानो की जमीन कवडीमौल भाव मे ली गयी! जहां सिर्फ कार पार्किग के लिये
रुपये २०० - १५०० चार्जेस है , और रेस देखने के तिकीट ६५००-३५००० तक है ! इस
मे दौडने वाली कार की किमत भी १०-१२ करोड होती है और एक रेस के बाद ये कार
बेकार हो जाती जाती है ! इतनी महंगी रेस को , अमिरों के इस तमाशा को उत्तर
प्रदेश सरकार ने मनोरंजन कर भी माफ कंर दिया. तथा वाणिज्य कर, वैट,
लक्जरी कर तथा बिक्री कर से नाजायज छूट दी! ९०% गरीब सामान्य सुविधा से वंचित भारतीयों के जख्ममो पर इस तऱ्ह नमक छिडकना ये सरकार की बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय इस नित्ती का पराभव है!
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