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Tuesday, July 5, 2011

बिखरे मोती: दंश ..

जब  भी ...
मन के 
चूल्हे पर 
मैंने 
ख़्वाबों क़ी
रोटी  सेकी
मनमोहन तेरे 
दंश भरे महंगाई के 
अंगारों ने 
उसे जला डाला ...

बिखरे मोती: दंश ..

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया व्यंग :):)

THANTHANPAL said...

Shivin Garg Roti bhi senkne laayak kahaan rahe.....LPG gas ke daam itne jo badhaa diye..........

Anonymous said...

hi
very apt and correct. ये दंश आपको कहां से मिला?
धन्यवाद.