हर साल होनेवाले दहषदवादी बोम्ब हल्ले, बढ़ता हुवा भ्रष्ट्राचार, कालाबाजार,
बेईमानी . इन सब बातोपर गठबंधन रोना रोने वाले और मज़बूरी जताने वाले कमजोर
पंतप्रधान. ऐसी घटनाएँ होती रहती है कहने वाले बेईमानो के भावी पंतप्रधान , हर बातपर
देशहित नहीं तो स्वार्थ देखने वाला विरोधी पक्ष . हताश आम आदमी ये देखते
हुवे अब इस देश को एक हिटलर की, एक नथुराम की या पुरे दिल्ही पर आणीबाणी में
बुलडोझर चलानेवाला और नसबंदी करनेवाले संजय गाँधी की जरुरत है, ऐसा महसूस
होता है.
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जो जीता वही सिकंदर इस कहावत नुसार दुनिया को लगता
अमेरिका बराबर था और हिटलर गलत था. मगर हिटलर जीत जाता हो दुनिया का इतिहास
भूगोल बदल जाता....... २० साल में मृत हुवे देश को फिनिक्स पक्षी जैसे राख
में से ऊँची भरारी ले कर पुरे दुनिया से युद्ध लढना ये कोई कांग्रेसी नेता
के बस की बात नहीं.हिटलर के नेतृत्व
क्षमता से प्रभावित हैं आज का युवा। हिटलर एक ऐसा नेता था जिसमे नेतृत्व के सभी
गुण थे . सबको साथ लेकर चलने का गुण। कुशल प्रबंधन भी है एक वजह। देश
के लिए कुछ करने की भावना। स्वाभिमान के लिए लड़ने की ताकत। एकता बनाए
रखने का प्रयास। चुनौतियों के लिए सबसे पहले कदम बढ़ाना। अनुशासन में
रहने का गुण भी पंसद। उसकी राष्ट्र भक्ति मेहनत करने की क्षमता उच्च थी . हर शास्त्र के में वो माहिर था. संगीत, लेखन , पेंटिंग आर्किटेक में उसे
उच्च मालूमात थी. लढाई में रणगाड़े तोपों का महत्त्व उसने सबसे पहले पहचाना था. उसके सामने हमारे नेता बौने कद के लगते है,
अपने हिंदुस्तान को भी एक हिटलर की जरुरत है एक नेपोलियन बोनापार्ट की
जरुरत है एक भगतसिग एक आझाद, राजगुरु सुखदेव चाफेकर, खुदीराम बोस जो मात्र 19 साल की उम्र में ही देश के लिए फाँसी पर चढ़ गए , देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त मंगल पांडे रानी लक्ष्मी बाई बेगम ह्जरत महल रानी द्रोपदी बाई . रानी ईश्वरी कुमारी नर्तकी अजीजन बिना किसी ऐसे इन्सान के अपने देश का कुछ भी नहीं होने वाला है.
हमारे राजनेताओ को सिर्फ अपनी कुर्सी से ही मतलब है उनको देश से कोई लेना देना नहीं है.हिटलर ने दुनिया को जीतना चाहा सिर्फ जर्मनी के लिए. वह जर्मनी को सबसे ऊपर देखना चाहता था. अपने देश के नेताओ को जनता के दुखो से कोई मतलैब नहीं है उनको सिर्फ वोट चाहिए. हमारे देश के नेता आराम भरी जिंदगी जीते है उनको लोगो के दुखो का कोई अहसास नहीं है .सिर्फ चुनाव के समय हमारे राजनेता दीखते है या एक दुसरे की टांग खीचते समय . बस हो गया अब ये अहिंसा का खुद के देश बांधव को मारने वाला उनका खून बहाने का खौफनाक खेल. भगवन शंकर जैसी तीसरी आँख खोलकर तांडव नृत्य करने का समय आ गया है.
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