महान!!!!!!!!!! भारतीय सांसदीय के लोकशाही मंदीर में ही लोकशाही के रक्षक ,
भ्रष्ट्र,बेईमान नेता, नौकरशाही का दुश्मन लोकपाल बिल का फिर कतल ,
गर्भपात हो गया है. कंस ने भविष्य में अपने को मारने वाले भांजे की डर से
अपनी ही बहन के बच्चों का कतल कीया था; उसी तरह कांग्रेस भाजप और सब
राजनैतिक दलों के सोनिया , राहुल मनमोहन , सुषमा, लालू मुलायम ममता इन
सभी बेईमान भ्रष्ट्र अधर्मी ने नेताओं ने मिलजुलकर भविष्य की डर ये
गर्भपात कतल कीया.
कंस के लाख प्रयासों के बाद भी उसे मारने वाले कृष्ण का जनम हो ही गया. और
बेईमान भ्रष्ट्र कंस मारा गया. ये इतिहास है. आज के भ्रष्ट्र बेईमान
अधर्मी नेता ये इतिहास भूल गये और कंस जैसा बर्ताव करने लगे . ... मौत के
डर से गये चालीस साल से बारबार लोकपाल का कतल करने लगे. सत्ता संपत्ति के
मगरुरी में जल्लोष करने लगे. ...... पर उन्हें ये मालूम नही की जनता की कोख
में जनलोकपाल का बीज बो दीया गया है. आन्ना और आन्ना टीम ने जनता की मन
में इस जनलोकपाल बीज सक्षमतासे लगाया है . अब उसे उखाड़ क़र फेकने की ताकद
कीसी भी भ्रष्ट्र अधर्मी नेता में नही. एक ना एक दिन मजबूत जनलोकपाल का
निर्माण होगा ही. और कृष्ण ने जिस तरह कंस सहित कौरव का नाश कीया उसी तरह
ये जन लोकपाल भ्रष्ट्र बेईमान नेताओं का नाश करेगा ही. तब कंहा गया था तेरा
धर्म? इस सवालका जबाब इन नेताओं को देना पड़ेगा. और मरना ही पड़ेगा. यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थ्ससनमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
ये कृष्णजी कहके ही गये है. आज के अधर्म का नाश करने के लिये ही भगवान ने
आन्ना और आन्ना टीम के रूप में जनम लिया है . जीत धर्म की ही होगी. 
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1 comment:
धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri
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