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Wednesday, December 9, 2009

जनताको खाने को अनाज मिले या ना मिले , अनाज से शराब की ईकाया लगते चलो .


जनताको खाने को अनाज मिले या ना मिले , अनाज से शराब की ईकाया लगते चलो .
शराब की गटारे बहाते चलो , जनता को शराब की गटर में डुबोते रहो. २


कोन है छुत कोन हें अछुत , सब  में पैसा ही समाया है,
सत्ताधारी  और विरोधी  ये सब  झूठे भरम है सारे, इस झूठे भरम में जनता  भरमाई हें , २
झूठे आश्वासन झूठे विकास की  खाब्बों का अभास करवाते रहो .
शराब की जय जय करते रहो . २


सारे अनाज के कण कण में है , दिव्य सोमरस की मात्रा
इक वाइन है ,दूसरी हें देशी ,  सबकी नशा ही समाधी हें
भूके पेट नशे की समाधी लगाते रहो .
जिंदगीके सब गम मिटाते रहो
जनता को जाम पे  जाम पिलाते रहो . जय हो जय  हो !!!!!

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