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Saturday, December 5, 2009

पूसा के वैज्ञानिक ने बांस से बनाई बिजली

पूसा के वैज्ञानिक ने बांस से बनाई बिजली



Sep 13, 11:54 am
मुजफ्फरपुर [गणेश कुमार मेहता]। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय वानिकी विभाग के वरीय वैज्ञानिक डा. आरएन झा के अद्यतन शोध ने वैज्ञानिक हलकों में जिज्ञासा पैदा कर दी है। उन्होंने बांस से बिजली बनाने की तकनीक इजाद की है। इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित उनके आलेख ने जहां बायोमास [घास से बिजली] पर सबसे अधिक काम करने वाले चीनी वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है वहीं नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन ने भी उनसे तकनीक मांगी है। चीन में तो इस पर काम भी शुरू हो गया है। इधर, डा. झा अपने लैब में इसे विकसित करने में रात-दिन जुटे हुए हैं। कृषि के अलावा पावर सेक्टर में शोध कर रहे वैज्ञानिकों की नजर भी अब उन पर टिकी हुई है।

कई वर्षो से डा. झा की बांस से बिजली बनाने की तकनीकी लगभग अंतिम चरण में है। डा. झा ने बताया कि बायो इनर्जी में सबसे अधिक संभावना बांस में है। एक किलो बांस से एक घंटा में 15 सौ वाट बिजली पैदा की जा सकती है। बांस का औसतन उम्र पांच वर्षो का होता है। वह जितना पुराना होगा, उतनी अधिक बिजली पैदा की जा सकती है। इसके लिए उन्होंने बड़ा बक्सा के आकार की एक मशीन इनर्जी बायोसूट गैसफायर मशीन बनायी है। इसके अंदर 440 वोल्ट का ट्रांसफार्मर लगा हुआ है। इसमें बांस का बिस्कुट डाला जाता है। इस बाक्स को जेनरेटर पर चलाया जाता है। डा. झा के अनुसार यह ईधन के अन्य स्रोत से भी चलाया जा सकता है। बांस का बिस्कुट बनाने की भी मशीन बनायी गयी है। डा. झा ने बताया कि इस पद्धति से बिजली की लागत 1.35 रुपये प्रति यूनिट आयेगी। यह पद्धति पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त होगी। डा. झा के अनुसार बांस कार्बन डाई-आक्साइड का सबसे बड़ा अवशोषक है। बांस की अधिक खेती कर पर्यावरण से कार्बन डाई-आक्साइड को कम किया जा सकता है। इंटरनेशनल जर्नल आफ बैम्बू में यह शोध रपट छपने के बाद बायोमास पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने इसे हाथोंहाथ लिया है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में पहल कर किसानों के भविष्य को संवारा जा सकता है और ऊर्जा संकट से मुक्ति पाई जा सकती है





 




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